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Monday, November 9, 2015

साधू

साधू क्यों दिमाग खराब कर रहा है, ये राजनीति के पचड़े में अपने पाँव क्यों घुसा रहा है। ये तेरा काम नहीं है। तू चल अपने काम पे। ना घर तेरा ना घर मेरा दुनिया रैन बसेरा। लेना एक न देना दो। फिर क्या घर फूंक तमाशा देखना? जीत तेरी होनी नहीं है और हार तुझे बर्दास्त नहीं। फिर क्यों हार जीत के खेल में उलझ रहा है। छोड़ ये दुनिया जी का जंजाल है। फिर क्यों दिमाग खराब कर रहा है। जब उनका गला कटेगा तब तेरा भी कट जाएगा। नई कौन सी बात होगी? चल अपनी राह। हार जीत की लालसा गृहस्थियों के काम हैं। तू चल यहाँ से.…… छोड़ देश दुनिया। चल अपनी राह। सैर कर अंतर्मन की,  मौज कर मौज में रह। चल खुसरो घर आपने…
साधो ये मुर्दों का देश....

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