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Friday, October 23, 2015

ऑपरेशन

अंदर केबिन में बच्चा जोर जोर से चीखने लगा मम्मी मम्मी मम्मी और उसके बाद तो पूछो मत बच्चा सारा रामायण महाभारत वेद कुरआन सब बांच गया। पांच मिनट में 375 गालियां। माशाअल्लाह क्या जुबान पाई थी लौंडे ने। कमाल था। ठेठ गांव का छोरा। बित्ते भर का छोरा और गज भर की जुबान यहीं देख रहा था। लेकिन महाशय जब अपने पर बीतती है तभी असल समझ में आता है। सारी अकलियत, शराफत, नफासत और नजाकत धरी की धरी रह जाती है और बन्दे में वही ठेठ देशी गंवई माटी की महक आने लगती है। और अगला सारी पढ़ाई लिखाई किनारे रख, जितना याद है सब एक सांस में सुनाने लगता है। और याद भी क्या क्या है..... आए हाए हाए हाए.....सब नजर आने लगता है। सात पर्दों में छुपी शराफत की नकाब जब उतरती है तो बस अल्लाह कसम जी करता है कच्चे धागे से गला घोंट दें। अगले का हाल देख के मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी। वैसे तो हम फेसबुक पर रोज ही खून खच्चर करते रहते हैं। ये कर दूंगा वो कर दूंगा ब्ला ब्ला ब्ला लेकिन उस समय काटो तो खून नहीं वाला हाल था। बच्चा अभी गालियां ही दे रहा था उसका बाप उसे गोद में उठाए हुए बाहर ला रहा था। अपना तो जिया धड़क धड़क जाए वाला हाल हो रहा था। तभी केबिन से आवाज आई नेक्स्ट। आइला मेरा नम्बर। अपन पसीने पसीने हो गए याद ही नहीं था कब आखिरी सुई लगी थी। साथी ने धकियाया चलो ना, खैर जी कड़ा करके टेढ़े टेढ़े आगे बढ़े। क्या हुआ है? जी फुंसी है ...... साला फोड़े को फुंसी बोल दिए..... कहाँ है? अड्डा बताया। अगले ने फरमाया लेट जाओ ये करो वो करो...... किया सब जो वो बोलता गया। और करता भी क्या? मजबूरी थी दवाइयों के काबू के बाहर जा चुकी थी बात। बस जी अगले ने सीधी टेढ़ी बांकी सारी तरह की कैंचियां सामने रख दीं। उसके असलहे देख के और पिछले वाले का हाल देख के अपना तो खून जम गया। अगला थोड़ी देर तो घाव को ग्लब्स पहने हाथ से छू छा कर देखा फिर तो हमारे मुँह से "आए याये याये याये" की आवाज ही निकली। भोवइ वाले ने पिछले मरीज की खुन्नस भी मेरे ही घाव पर निकाल दी थी। इतनी जोर से दबा रहा था कि मेरी तो जान ही निकल गई एक मिनट भी नहीं लगा होगा और दिन में तारे नजर आने लगे थे। खैर जो माल मटेरियल निकला था सब पोंछ पांछ कर फिर वो टेढ़ी वाली कैंची में रुई फंसा कर लाल दवा में डुबोया और फिर....... ......जयकारा शेरा वाली दा.... आए याये याये याये की आवाज की जगह .... उ हू हू हू हू बस बस बस। दस पन्द्रह सेकेण्ड में ही अगले ने सारी हेकड़ी बाहर ला दी। उसके बाद अगले ने बमुश्किल 30 सेकेण्ड में टेप टाप लगा के मरहम पट्टी कर दी और बोला हो गया चलो जाओ। उस समय तो वही मरीज वाली टेबल ही डनलप का गद्दा लग रही थी। दिल कर रहा था थोड़ी देर वहीं लेटा रहूँ लेकिन हिम्मत मार के उठा और मन ही मन उस लौंडे से दुगनी ज्यादा गालियां देता टेढ़े टेढ़े बाहर आ गया। लिखी हुई दवाइयाँ ली हिदायत पूछी अगली ड्रेसिंग का दिन पूछा और बैक टू पैवेलियन। साथी भी ससुरा पूरा पाजी सीधे सीधे रास्ते के बजाए गड्ढे गड्ढे गाड़ी चला रहा था गचकी दे के और दुखा रहा था।
डक्टरवो ससुरे पूरे बदमास होते हैं, अरे यार फोड़ा फुंसी देख के धीरे से दबाओ, अगले को पहले से ही दुःख रहा है। लेकिन नहीं, चेकअप करते समय ही ससुरे मजा लेते हैं फोड़वा को और जोर से दबा देते हैं भोवइ वाले। जब मरीज से "आए याये याये याये" की आवाज न निकलवा लें तब तक उनको भी चैन नहीं पड़ता है।
खैर 4 दिन से राम भजो हित नाथ तुम्हारा गा गा के काम चल रहा है कल अगली ड्रेसिंग का दिन है। हुआ क्या है कि "बम" पे "ऐटम बम" निकल गया है। "ऐटम बम" नहीं समझे? फुंसी यार। वहीं "उसी जगह" वही अंजन की सीटी से म्हारा "बम" डोले वाले "बम" पे। हंसो मत यार।
फलाने Raj Yadav और बड़के डाक्साब Vivek Giri जी क्षमा करियेगा। का करें एतना जोर से दबाए हैं की आशीर्वाद तो इकल नहीं रहा है।

Tuesday, September 8, 2015

धमकी

औकात में रह यार, क्यों पजामे से बेबात बाहर आ रहा है। बेबजह इतना कूदेगा तो पजामा भी उतर जाएगा। अपनी औकात तो देख तेरा अपना मुल्क तुझसे सम्भल नहीं रहा है। और तू हमें मटियामेट करने की धमकी दे रहा है। ये देख बी एस एफ का कश्मीर का स्ट्राइक तुझसे सम्भल नहीं रहा है। सेना को तू कैसे झेल पाएगा। खुद दो टुकड़े होने की राह पर है यार। अपना घर सम्भाल ले, लड़ाई वड़ाई बाद में कर लेना। अपने भूखे लोगों को रोटी पानी दे उनके लिए अस्पताल की व्यवस्था कर। लड़ाई से तुझे कुछ हासिल न होगा। अब तक तू लड़ाई के बाद भी मेज पर जीत जाता था पर अब भूल जा की लड़ाई के बाद भी तू मेज पर जीत जाएगा। अब तू हारेगा भी और बर्बाद भी हो जाएगा। और ये परमाणु बम की धमकी किसी और को दिया कर यार। ये एटमी खिलौने तेरी औकात से बाहर की चीज हैं। खामखाँ इन पर अपनी एनर्जी मत वेस्ट किया कर। इसका यूज कर मिस यूज मत कर और अपने उस बुढऊ डिफेन्स मिनिस्टर और उस पगलेट राहिल को समझा फालतू की बकवासें न किया करें। अपने बच्चों को गलत इतिहास पढ़ा कर ये मुगालता न पाल ले कि पिछले युद्ध तू जीत चुका है। दिमाग में ठण्ड रख और अपने मुल्क को तरक्की के रास्ते पे ले जा। बकवासें जरा कम किया कर।

Saturday, February 14, 2015

वेलेंटाइन डे स्पेशल

वेलेंटाइन डे स्पेशल : अथ श्री वेलेंटाइन बाबा की कथा विशेष

लड़का - लड़की:
लगाव
झुकाव
पटियाव
घुमाव
फिराव
गिफ्टियाव
फिर
झगड़ाव
फिर
समझाव
बुझाव
नहीं बात बने तो
अलगाव
विलगाव

लड़के का परिवार ( अफेयर का पता चलने पर)
थपड़ियाव
दुनियादारी
समझाव
बुझाव
बताव
(नहीं माने तो)
लतियाव
(फिर भी नहीं माने तो)
बियाह कराव
मामला निपटाव
पैंडा छुड़ाव

मजनूं पकड़ो दल विशेष : ये या तो किसी से खार खाए होते हैं या किसी से खुन्नस होती है या इनकी किसी और के साथ सेट हो गई होती है या और भी बहुत कुछ

लट्ठ को तेल पिलाव
छापामार दल बनाव
जानकारी जुटाव
रेस्तरां रेस्तरां पार्क पार्क
पहरेदार बिठाव
लपटा लपटी करते पकड़ाव
पहले कंटापियाव
फिर लतियाव
धमकाव
दो चार लट्ठ जमाव
दोनों के माता पिता बुलाव
हैण्ड ओवर कराव
पुलिस आ जाए तो
पहिले हड़काव
रुआब दिखाव
फिर ना माने तो
पुलिस से
एक आध
लट्ठ खाव
हाथ छुड़ाव
कोशिश कराव
और
खुदै भाग जाओ

कथा विसर्जन होत है। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

Wednesday, October 29, 2014

धूप

दूर क्षितिज पर उगता सूरज
गुन गुन करती आती धूप
रिश्तों की गरमाइश में
तार पिरोती आती धूप
यहां वहां की ओछी बातें
कुछ समझी कुछ सोची बातें
कुछ छोटी कुछ मोटी बातें
कुछ उल्झी कुछ सुल्झी बातें
रिश्तों की ठंढ़ाईश में
गुन गुन जीवन लाती धूप
चिट्ठी पत्री की बातें
मान मनौवल की बातें
खाट खटोलों की बातें
समझ सयानों की बातें
दूर हुए रिश्ते नाते
अंधकार की बदली में
जीवन नृत्य कराती धूप
सूरज अस्ताचल को जाता
धीरे धीरे जाती धूप
जीवन के गहरे अर्थों को
समझाती है,  जाती धूप
जीवन की उत्तरवेला पर,
नवजीवन की राह दिखती,
चलती जाती ठंडी धूप।


​नवजीवन का आशय यहाँ देहावसान के पश्चात् नया शरीर धारण करने से है।  

Tuesday, July 29, 2014

समझदारी

अर्थ निरर्थक हो जाते हैं।
यदि तुम इसको ना समझो तो।।

शब्द निरर्थक हो जाते हैं।
यदि तुम इसको ना जानो तो।।

धर्म निरर्थक हो जाता है।
यदि तुम इसको ना मानो तो।

समय निरर्थक हो जाता है।
यदि तुम इसको ना आंको तो।।

सीख निरर्थक हो जाती है।
यदि तुम इसको ना धारो तो।।

दौर ए जहाँ


किस दौर में बैठे हैं हम।
न तुमको पता है न हमको पता है।

समय का मुसाफिर कहाँ जा रहा है।
न तुमको पता है न हमको पता है।


छिड़ी है बहस किस तरफ जा रहे हैं।
न तुमको पता है न हमको पता है।


समय की ये धारा कहाँ जा रही है।
न तुमको पता है न हमको पता है।


कहाँ से चले थे कहाँ आ गए अब।
न तुमको पता है न हमको पता है।


वो स्वर्णिम सवेरा फिर से आएगा क्या।
न तुमको पता है न हमको पता है।

राष्ट्रीय अधिकार

"थूकिये भाइयों और बहनों को सादर समर्पित"

थूक थूक थूक थूक
थूक थूक थूक थूक

इधर थूक उधर थूक
यहाँ थूक वहां थूक
जहाँ दिल करे और  जहाँ मुंह भरे
वहीँ पर तू थूक

थूक थूक थूक थूक
थूक थूक थूक थूक

ये कोने
ये सडकें
ये सरकारी बिल्डिंग
ये सुंदर से गमले
तुम्हारे लिए हैं
जहाँ दिल करे और  जहाँ मुंह भरे
वहीँ पर तू थूक

थूक थूक थूक थूक
थूक थूक थूक थूक

आक्थू पिचक थू के स्वरों का ये गुंजन
होठों पे सजता ये रक्ताभ चन्दन
कभी भी कहीं भी
अचानक ये आक्थू
सड़कों दीवारों पर सजती ये आक्थू
चलते मुसाफिर को कर देती हतप्रभ

जहाँ दिल करे और  जहाँ मुंह भरे
वहीँ पर तू थूक

थूक थूक थूक थूक
थूक थूक थूक थूक

चलते चालाते लकड़बम्ब (सुर्ती )लेके
चूना मिलाके हथेली रगड़ते
कड़क हाथों से फिर उसको फटकते
समवेत स्वरों में फिर पिचक थू के नारे लगाते
जहाँ दिल करे और  जहाँ मुंह भरे
वहीँ पर तू थूक

थूक थूक थूक थूक
थूक थूक थूक थूक