गहन तिमिर की घटाएं
प्रतिकूल व्यवस्थाएं
निगलने तो आतुर लोलुपताएं
कंटकीर्ण रास्ते
चहुंओर घेरे विषधर भयंकर
आस्तीनें में बैठे नाग जहरीले
लहराया परचम फिर भी सुहाना
आशाओं का दीपक हुआ फिर प्रज्ज्वलित
सुनहरे दिनों का आकांक्षित हुआ मन
उगने को है फिर से वैभव का सूरज
सुखी मन सुखी जन है गर्वित ये भारत
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